प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में पुत्री की सामाजिक स्थिति बताइए।
उत्तर-
ऋग्वैदिक काल में पुत्रों के समान, पुत्रियों को भी अधिकार प्राप्त था। पुत्र जैसा ही उन्हें भी शैक्षणिक अधिकार एवं सुविधायें प्रदान की गई थी। कन्याओं का भी उपनयन संस्कार होता था तथा वे भी ब्रह्मचर्य का जीवन व्यतीत करती थी। ऋग्वेद में अनेक ऐसी स्त्रियों के नाम मिलते हैं जो विदुषी तथा दार्शनिक थीं और उन्होंने कई मन्त्रों एवं ऋचाओं की रचना भी की थी। विश्वास को "ब्रह्मवादिनी" तथा “मन्त्रद्रष्टा " कहा गया है जिसने ऋग्वेद के एक स्त्रोत की रचना किया था। घोषा, लोपामुद्रा, शाश्वती, अपाला, इन्द्राणी, सिकता, निवावरी आदि विदुषी स्त्रियों के कई नाम मिलते हैं, जो वैदिक मन्त्रों तथा स्त्रोतों की रचयिता हैं। ऋग्वेद में बृहस्पति तथा उनकी पत्नी जुहु की कथा मिलती है। बृहस्पति अपनी पत्नी को छोड़कर तपस्या करने गये किन्तु देवताओं ने उन्हें बताया कि पत्नी के बिना अकेले तप करना अनुचित है। इस प्रकार के उद्धरणों से स्पष्ट होता है कि स्त्री-पुरुष की ही भाँति तपस्या करने की भी अधिकारिणी थीं। महिला छात्राओं के दो वर्ग थे - ब्रह्मवादिनी तथा सघोद्वाहा। प्रथम आजीवन धर्म तथा दर्शन की अध्येता थी तथा द्वितीय अपने विवाह के समय तक ही अध्ययन करती थीं। इस बात के भी उदाहरण हैं कि ऋग्वैदिक महिलायें दार्शनिक समस्याओं पर पुरुषों के साथ वाद-विवाद करती थीं। इस काल में कन्याओं का विवाह प्रायः पन्द्रह-सोलह वर्ष की आयु में होता था और इस प्रकार उन्हें अध्ययन का पर्याप्त अवकाश मिल जाता था। समाज में सती तथा पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था। किन्तु दो दृष्टियों से इस समय स्त्री को अनुपयुक्त माना गया-
(i) उसे सम्पत्ति का अधिकार नहीं था।
(ii) वह शासन के योग्य नहीं थी।
ऋग्वैदिक युग में स्त्री को सम्पत्ति तथा शासन के अधिकारों से वंचित रखने के लिए कुछ विशेष कारण उत्तरदायी थे। भू-सम्पत्ति का अधिकारी वह था जो शक्तिशाली शत्रुओं से बलपूर्वक उसकी रक्षा करने में समर्थ होता। चूँकि यह कार्य स्त्री के वश का नहीं था अतः धन सम्बन्धी अधिकारों को मान्यता नहीं मिली। इसी प्रकार की असमर्थता शासन के क्षेत्र में भी रही है। आर्य एक विदेशी भूमि में क्रमशः अपना राज्य स्थापित कर रहे थे। उनके शत्रुओं की संख्या अधिक थी। ऐसी स्थिति में स्त्रियों को शासन सम्बन्धी अधिकार देना उनके नवगठित राज्य की सुरक्षा की दृष्टि से उपुयक्त नहीं होता।
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